Monday, July 18, 2011

बचपन के तनाव का जीवन पर प्रभाव

 सेहत समाचार
वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि जीवन के शुरुआती दौर में जो तनाव होता है, उसका असर दूरगामी होता है। यह व्यक्ति की शारीरिक क्रियाओं और व्यवहार को प्रभावित कर सकता है। वैज्ञानिकों ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह असर उस क्रियाविधि के जरिए होता है, जिसे एपिजिनेटिक प्रभाव कहते हैं।

वैसे तो इस बात का अनुमान पहले से ही था कि बचपन के अनुभव वयस्क अवस्था में भी अपना असर दिखाते हैं, मगर यह कैसे होता है, इस मामले में कोई स्पष्ट समझ नहीं थी। एक परिकल्पना यह रही है कि पर्यावरण का असर जीनोम की भौतिक संरचना पर पड़ता है और यह असर दूरगामी परिणाम पैदा करता है। अब जर्मनी के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट ऑफ साइकिएट्री के क्रिस मुर्गाट्रॉयड और उनके सहयोगियों ने कुछ प्रयोगों के जरिए इसकी क्रियाविधि पर प्रकाश डाला है।

 
उन्होंने कुछ चूहों को जन्म के बाद प्रथम दस दिनों तक प्रतिदिन तीन घंटे उनकी माँओं से दूर रखा। जाहिर है, यह उनके लिए तनाव का कारण बन गया। आगे चलकर इन चूहों में व्यवहारगत बदलाव देखे गए। इसके बाद उनके जीनोम का विश्लेषण किया गया। शोधकर्ताओं ने खास तौर से उस जीन पर ध्यान दिया, जो आर्जीनीन वैसोप्रेसिन नामक हार्मोन का निर्माण करता है। यह हार्मोन मूड और संज्ञान संबंधी व्यवहार का नियंत्रण करने के लिए जाना जाता है। आमतौर पर तनावजनित गड़बड़ियों के मामले में दवाइयों का लक्ष्य आर्जीनीन वैसोप्रेसिन का ग्राही ही होता है।

देखा गया कि बचपन में जिन चूहों को तनाव में रखा गया था, उनमें 6 सप्ताह की उम्र से लेकर 1 वर्ष तक ठीक वैसे व्यवहारगत परिवर्तन हुए जैसी कि अपेक्षा थी। इसके अलावा हार्मोन में भी अपेक्षित परिवर्तन देखे गए। विश्लेषण करने पर पता चला कि इन चूहों के मस्तिष्क में आर्जीनीन वैसोप्रेसिन का मिथाइलेशन बहुत कम हुआ था।

 
मिथाइलेशन का कम स्तर खास तौर से मस्तिष्क के उस हिस्से में उल्लेखनीय था, जो हार्मोन से संबंधित तनाव का नियंत्रण करता है। इससे लगता है कि बचपन का तनाव हार्मोन निर्माण के लिए जवाबदेह जीन को प्रभावित करता है और यह प्रभाव बड़ी उम्र में भी बरकरार रहता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जीनोम ने बचपन के तनाव को याद रखा था।

इस अनुसंधान ने तनाव की वजह से होने वाले व्यवहारगत परिवर्तनों की आणविक प्रक्रिया को उजागर किया है। इससे लगता है कि इस तरह के परिवर्तनों को संभालने के लिए उपचार जितनी जल्दी शुरू हो जाए, उतना अच्छा। एक बात यह भी स्पष्ट होती है कि जो परिवर्तन मिथाइलेशन की वजह होते हैं वे स्थायी होते हैं, इसलिए ऐसे मामलों में शायद उपचार के लिए आर्जीनीन वैसोप्रेसिन के स्तर को अन्य ढंग से नियंत्रित करना ही कारगर होगा।
सौजन्य से - (स्रोत

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